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Train Sleeper Coach : जानिए ट्रेनों में स्लीपर कोच का क्या है हाल? यात्री कर रहे हैं भेड़ बकरी की तरह यात्रा, जाने पूरी खबर

इन दोनों रेल मंत्रालय का दवा है कि साल 2014 के बाद यात्री सुविधा और बेहतर हुई है और जिस भी रूट पर भीड़ होती है उसे रास्ते पर क्लोन ट्रेन भी चलाई जा रही है लेकिन पुरानी सुपरफास्ट ट्रेन के बारे में बताने जा रहे हैं. जिसके रिजर्व क्लास में भी सुविधा के नाम पर कुछ नहीं है. लोग भेड़ बकरी की तरह ठुंस कर जा रहे हैं, लटक कर यात्रा कर रहे हैं। ऐसे नहीं है कि यह बात रेल प्रशासन को पता नहीं है रेलवे ने टिकट चेकिंग स्टाफ को परी चौक से बरतने के लिए कहा है,पर अनऑथराइज्ड पैसेंजर्स को उतार कर बोनाफाइड पैसेंजर्स को राहत पहुंचाने के लिए नहीं बल्कि उनसे वसूली के लिए।

रेलवे के लिए दिसंबर और जनवरी का महीना लीन सीजन कहा जाता है। इन दोनों ना तो शादी ब्याह का मौसम होता और ना ही त्योहारों की कोई भीड़ होती है लेकिन फिर भी बिहार के भागलपुर से पटना जाने वाली दिल्ली के आनंद विहार वाले टर्मिनल ट्रेन विक्रमशिला एक्सप्रेस (12367 अप) के स्लीपर क्लास में अभी भी यात्री भेड़-बकरी की तरह ठुंस कर और बंदर की तरह लटक कर यात्रा कर रहे हैं।

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हम आपको आज सफर करा रहे हैं छह जनवरी 2023 को भागलपुर से चली 12367, विक्रमशिला एक्सप्रेस में। यह ट्रेन दिन में 12 बजे भागलपुर से चली तो इसका जनरल डिब्बा ही नहीं स्लीपर क्लास के सभी डिब्बे पूरी तरह से ठुंसे हुए थे। इस ट्रेन में बीच के स्टेशनों पर रिजर्व पैसेंजर चढ़े लेकिन अपनी सीट को वह हासिल नहीं कर पाए पहले से ही उन रिजर्व्ड पैसेंजर उनकी बर्थ पर कब्जा जमाए हुए थे।

सिर्फ स्लीपर क्लास के एक डिब्बे में 80 यात्रियों के लिए बर्थ होती है जिसमें 12 आरएसी (RAC) पैसेंजर्स भी होते हैं। लेकिन विक्रमशिला एक्सप्रेस में आपको रिजर्व पैसेंजरों के अलावा हर डिब्बे में ढाई सौ से 300 अनऑथराइज्ड पैसेंजर भी दिखाई देंगे जिन्हें सीट या बर्थ नहीं मिलने पर दोनों सीटों के बीच फर्श पर शौचालय के पास कॉरिडोर में और यहां तक की दो डिब्बो के कनेक्ट करने के लिए जो जगह होती है वहां भी बैठ या खड़े होकर जाते हैं और यह पैसेंजर बिना टिकट के नहीं थे इसमें से कुछ पैसेंजर तो वेटलिस्टेड टिकट वाले हैं लेकिन अधिकतर पैसेंजर चालू या जनरल टिकट वाले थे जो स्लीपर क्लास में चढ़ गए थे। टिकट चेकिंग स्टाफ इसे ढाई सौ रुपए की पेनल्टी के साथ ही स्लीपर और सेकंड क्लास के फेयर का डिफरेंस वसूल करते हैं।कुल मिलाकर उनसे 500 से लेकर साढे 500 रुपए तक की पेनल्टी वसूल की जाती है।

इस ट्रेन के स्लीपर डिब्बे में सफर करने वाले बोनाफाइड पैसेंजर की तो सहमत है किसी तरह संघर्ष करते हुए अपनी सीट या बाढ़ पर पहुंच भी गया तो वहां बैठने की जगह नहीं होती और सामान रखने में भी काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। पहले से जो व्यक्ति कब्जा जमाए होता है वह सीट खाली नहीं करता बल्कि कहता है एडजस्ट कर लो।
इस ट्रेन में लोग अपना जुगाड़ भी लगा लेते हैं। गमछा दोनों तरफ के खंभो पर बांध देते हैं। हवा में झूला तैयार करके उस पर बैठते हैं।

इस ट्रेन के स्लीपर क्लास में नौ डिब्बे में हर डिब्बे में एक जैसी हालत थी मतलब की 80 यात्री की जगह ढाई सौ से 300 यात्री हर डिब्बे में थे। यदि एक यात्री ने औसतन ₹600 भी आए तो 180000 रुपए तो गए थे। यदि उसमें सिर्फ 80 यात्री ही रहते तो फिर रेलवे को तो 40 हजार रुपये ही मिलते। मतलब कि नौ डिब्बे में तीन लाख 60 हजार रुपये। इन्हीं यात्रियों की बदौलत चार गुने से ज्यादा की कमाई। यही नहीं, टिकट चेकिंग स्टाफ से लेकर पुलिस के स्टाफ, हिजड़े, गा-गा कर मांगने वाली महिलाएं, सब इन यात्रियों से रास्ते में वसूली करते हैं, वह अलग।

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यह ट्रेन पटना से दिल्ली तक बहुत कम स्टॉपेज के साथ चलती है। इसलिए इसमें लोकल हॉकर या वेंडर नहीं चढ़ पाते हैं। इसलिए इसमें आईआरसीटीसी के लोग ही सामान बेचते हैं। वह भी मनमाना कीमत पर। रेल नीर (Rail Neer) के बदले लोकल पानी बेचते हैं, वह भी 20 रुपये में। आधी कप ड्रम वाली चाय 10 रुपये में बेचते हैं। रेलवे का स्टेंडर्ड कैशरोल मील या जनता खाना तो बेचते ही नहीं। बेचते हैं वेज बिरयानी और अंडा बिरयानी। इसकी कीमत है 100 रुपये और 120 रुपये। इस तरह का कोई खाना रेलवे के मेन्यू कार्ड में है ही नहीं। इनसे रसीद तो भूल ही जाइए।