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Ram Lalla Murti Reaction : प्राण प्रतिष्ठा के बाद मुस्कुराये रामलल्ला, मूर्ति के होठों पे आए मुस्कान और दिखी आँखों में ख़ुशी के चमक – मनमोहक मुस्कान देख हर कोई हो गया है हैरान

इन दिनों अयोध्या में राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा की गई. रामलला के विग्रह की अब हर जगह खूब चर्चा हो रही है. सोशल मीडिया पर रामलला की दो छवि शेयर की जा रही है।एक प्राण प्रतिष्ठा के पहले की और दूसरी उनकी पूजा की बात की विग्रह में दो फर्क देखे जा सकते हैं।गर्भगृह में रामलला की आंखें सजीव जैसी दिखने लगी हैं और उनका बाल सुलभ मनमोहक मुस्कान भी निखर गया है। आखिर यह चमत्कार क्यों हुआ? अगर ऐसा हुआ तो क्या आपने नोटिस किया।

राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के बाद रामलाल की मूर्ति का स्वरूप बदल गया रामलला की मूर्ति को बनाने वाले अरुण योगीराज ने बताया कि जब उन्होंने प्राण प्रतिष्ठा के बाद रामलला के दर्शन किए तो वह मंत्र मुक्त हो गए।उन्हें भरोसा ही नहीं हुआ कि यह रामलला की मूर्ति उन्हीं ने बनाई है।प्राण प्रतिष्ठा से पहले वह 10 दिनों तक अयोध्या में ही थे उन्होंने कहा कि गर्भ ग्रह में प्राण प्रतिष्ठा के बाद रामलला के विग्रह के भाव बदल गए हैं।उनकी आंखें जीवंत हो गई हैं और होठों पर बाल सुलभ मुस्कान आ गई है।प्राण-प्रतिष्ठा के बाद उनके विग्रह में देवत्व का भाव आ गया।

रामलाल की मूर्ति ढाई अरब साल पुराने कल ग्रेनाइट पत्थर से बनाई गई है जिसे कृष्ण शिला का नाम दिया गया।ञ इस कर्नाटक के जयपुरा होबली गांव से अयोध्या लाया गया। इस पत्थर की खासियत यह थी कि यह हर मौसम में एक जैसा रहता है और इस पर पानी का भी असर नहीं होता है। अगर विग्रह पर दूध या जल से अभिषेक भी किया जाए तो यह कभी पानी नहीं सोखेगी अरुण योगीराज ने इस 51 इंच की रामलाल की मूर्ति को 7 महीने में बनाया है। उन्हें ही राम लाल की खासियत बताते हुए यह दायित्व सौपा गया था।5 साल के बच्चे की छवि बनाने के लिए उन्होंने काफी रिसर्च भी की। शिल्प शास्त्र की कई किताबें भी पड़ी मुस्कान और भाव समझने के लिए स्कूलों में जाकर वह बच्चों से भी मिले।उन्होंने कई स्केच बनाए।

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कृष्ण शिला पर हाथ आजमाने से पहले उन्होंने टेक्नोलॉजी का सहारा भी लिया। अरुण योगीराज इसे बनाने के लिए आधी आधी रात तक जागते रहे। 5 साल के रामलला को बनाने के लिए उन्होंने काफी बारीकियां पर काम किया। इसके बाद उन्होंने वर्कशॉप में रखी मूर्ति की छवि और प्राण प्रतिष्ठा के बाद विग्रह के स्वरूप में फर्क भी देखा।

अरुण योगीराज की फैमिली पिछले 300 साल से मूर्तियों को बना रही है।उनके पिता योगीराज और दादा बसवन्ना भी कुशल शिल्पकार थे।अपने परिवार के पांचवी पीढ़ी के शिल्पकार अरुण योगीराज भी बचपन से ही यह पुश्तैनी कला सिखाते आए हैं। एमबीए करने के बाद उन्होंने प्राइवेट कंपनी में नौकरी की। साल 2008 में वह मूर्ति कला और शिल्पकार से जुड़ गए
अरुण का नाम पहली बार सुर्खियों में तब आया जब साल 2021 में पीएम नरेंद्र मोदी ने केदारनाथ में आदि गुरु शंकराचार्य की 12 फीट ऊंची प्रतिमा का अनावरण किया ।

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उन्होंने ही नेताजी सुभाषचंद्र बोस की 125वीं जयंती पर दिल्ली के इंडिया गेट लगाई गई प्रतिमा को बनाया। इसके अलावा मैसूर में हनुमानजी की मूर्ति, बाबा साहेब आंबेडकर और रामकृष्ण परमहंस की प्रतिमा भी बनाई। एक इंटरव्यू में अरुण योगीराज ने बताया कि रामलला की मूर्ति बनाना उनका सौभाग्य है। शायद भगवान राम चाहते थे कि विग्रह उनके हाथों ही बने। बनाने के दौरान उन्हें कई बार ऐसा अनुभव हुआ कि खुद ईश्वर उनसे यह काम करा रहा है।