1983 में चार्टर्ड अकाउंटेंट की पढ़ाई पूरी करने के बाद रामदेव ने तय कर लिया था कि उन्हें शेयर बाजार में ही अपना भविष्य देखना है. हाल ही में एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा, ‘मैं जानता था कि शेयर बाजार में ही मरना है.’
शुरुआती दिनों में जमकर की मेहनत
इस इंटरव्यू में करियर के शुरुआती दिनों को याद करते हुए वो कहते हैं कि 1980 के दशक में विश्लेषक के तौर पर कोई नौकरी नहीं थी. लेकिन उन्होंने दिवंगत आरके पीपरिया के पास विश्लेषक का विज्ञापन देखा. इस काम के लिए आवेदन करने वाले वो इकलौते उम्मीदवार थे. उन्होंने बताया कि शुरुआती दो साल में सुबह 10 बजे से लेकर रात 10 बजे तक आॅफिस में काम ही करते रहते थे. कई बार तो उन्हें दोपहर का खाना खाने तक का भी वक्त नहीं रहता था.यह भी पढ़ें: 4 साल बाद किसी एक महीने में सबसे ज्यादा सस्ता हुआ सोना, जानें कब तक कम रहेगा भाव
बिना पूंजी के कारोबार करना बेहद जरूरी
अपने काम को लेकर हमेशा प्रतिबद्ध रहने वाले रामदेव अग्रवाल ने कहा कि इन्हीं दिनों उन्हें बहुत कुछ सीखने को मिला, जिसके दमपर उन्होंने मोतीलाल ओसवाल की शुरुआत की. मोतीलाल से अपने शुरुआती दिनों को याद करते हुए रामदेव कहते हैं कि शेयर बाजार में उनकी भी दिलचस्पी थी. उनके भाई अहमदाबाद के प्रीमियम बाजार में काम करते थे. शुरुआत के दिनों में उन्हें अच्छे ग्राहक मिले. रामदेव का मानना है कि सबसे जरूरी बिना पैसे के कारोबार करना होता है. हर कारोबारी को शुरुआती समय में ऐसे बिजनेस मॉडल की शुरुआत करनी चाहिए, जिसके लिए पूंजी की जरूरत न हो.
कब से बफे को गुरु मानने लगे?
रामदेव बताते हैं कि 1987 से 1994 के बीच उन्हें लगता था कि वो काफी समझदार निवेशक हैं. लेकिन, 1994 में उन्हें एक मित्र ने बर्कशायर हैथवे के बारे में बताते हुए उसकी बैलेंसशीट पढ़ने को दी. इससे पहले रामदेव को इस कंपनी या वॉरने बफे के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. बर्कशायर हैथवे के बैलेंस शीट में से शुरुआती 30 पन्नों को पढ़ने के बाद उन्हें लगा कि वो निवेश के बारे में कितना कम जानते हैं. तभी से रामदेव अग्रवाल वॉरने बफे को अपना गुरु मानने लगे.
वो इस इंटरव्यू में बताते हैं कि 1965 से 1995 तक बर्कशायर के सभी बैलेंस शीट पढ़ा करते थे. उन्होंने कहा, ‘इसने मुझे पूरी तरह बदल दिया. 1965 से 1994 के दौरान बफे के वार्षिक खातों और बैलेंस शीट में असली बफेटोलॉजी यानी बफे की पढ़ाई है.’
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इसके बाद से उन्होंने 25 शेयरों के पोर्टफोलियो को 15 कंपनियों में बदला, जिसके बाद उसी साल में उनका पोर्टफोलियो दोगुना हो गया. वो बताते हैं कि इसके बाद उन्होंने कभी भी बिना फोकस के रणनीति नहीं बनाई. रामदेव अब हर साल ओमाहा जाते हैं. शुरुआती जीवन में उन्हें कंपनियों के बैलेंस शीट पढ़ने के अलावा उपन्यास पढ़ने का भी शौक था, जिसकी मदद से उनकी विचारधारा भी बेहतर हुई.
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